हे मातृभूमि (कविता) । कक्षा ८ कि कविता।


 हे मातृभूमि (कविता) 



                                               —  रामप्रसाद ‘बिस्मिल’




हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शीश नवाऊँ ।


 मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।



माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला ;


जीह्वा पे गीत तू हो मेरा, तेरा ही नाम गाऊँ ।।



जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे ;


उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढा़ऊँ ।।



माई ! समुद्र जिसकी पद रज को नित्य धोकर ;


करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।।



सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर ;


वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ-सुनाऊँ ।।



तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मंत्र गाऊँ ।


मन और देह तुम पर बलिदान मैं जाऊँ ।।


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