जीवन नहीं मरा करता है (कविता) । कक्षा सातवीं कविता।

 जीवन नहीं मरा  करता है (कविता) 


 कवि — गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’



छिप-छिप अश्रु बहाने वालों !


मोती व्यर्थ लुटाने वालो !


कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करते है।



माला बिखर गई तो क्या है 


खुद ही हल हो गई समस्या,


आँसू गर नीलाम हुई तो


समझो पूरी हुई तपस्या,



रूठे दिवस मनाने वालो !


फटी कमीज सिलाने वालो !


कुछ दीपों के बुझ जाने से आँगन नहीं मरा करते है। 



खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर 


केवल जिल्द बदलती पोथी,


जैसे रात उतार चाँदनी 


पहने सुबह धूप की धोती,



वस्त्र बदल कर आने वालो !


चाल बदल कर जाने वालो


चंद्र खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करते हैं।



कितनी बार गगरियाँ फूटीं


शिकन न पर आई पनघट पर,


कितनी बार किश्तियाँ डूबीं


चहल-पहल वो ही है तट पर,



तन की उमर बढ़ाने वालो !


लौ की आयु घटाने वालो !


लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है ।



लूट लिया माली ने उपवन 


लूटी न लेकिन गंध फूल की,


तूफानों तक ने छेड़ा पर 


खिड़की बंद न हुई धूल की,



नफरत गले लगाने वालो !


सब पर धूल उड़ाने वालो !


कुछ मुखड़ों की नाराजी से दर्पण नहीं मरा करता है।

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