।। नदी कंधे पर ।।
अगर हमारे बस में होता, नदी उठा कर घर ले आते ।
अपने घर के ठीक सामने, उसको हम हर रोज बहाते।
कूद-कूदकर, उचल- उचलकर, हम मित्रों के साथ नहाते ।
कभी तैरते कभी डूबते,इतराते गाते मस्ताते ।
नदी आ गई चलो नहाने, आमंत्रित सबको करवाते ।
सभी उपस्थित भद्र जनों का, नदिया से परिचय करवाते।
अगर हमारे मन में आता, झटपट नदी पार कर जाते ।
खड़े-खड़े उस पार नदी के, मम्मी मम्मी हम चिल्लाते ।
शाम ढले फिर नदी उठाकर, अपने कंधे पर रखवाते ।
लाए जहां से थे हम उसको, जाकर उसे वही रख आते ।
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