नदी कंधे पर (कविता)

।। नदी कंधे पर ।।

अगर हमारे बस में होता, नदी उठा कर घर ले आते ।

अपने घर के ठीक सामने, उसको हम हर रोज बहाते।

कूद-कूदकर, उचल- उचलकर, हम मित्रों के साथ नहाते ।


कभी तैरते कभी डूबते,इतराते गाते मस्ताते ।

नदी आ गई चलो नहाने, आमंत्रित सबको करवाते ।

सभी उपस्थित भद्र जनों का, नदिया से परिचय करवाते।


अगर हमारे मन में आता, झटपट नदी पार कर जाते ।

खड़े-खड़े उस पार नदी के, मम्मी मम्मी हम चिल्लाते ।

शाम ढले फिर नदी उठाकर, अपने कंधे पर रखवाते ।

लाए जहां से थे हम उसको, जाकर उसे वही रख आते ।

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