निर्माणों के पावन युग में ।। अटल बिहारी वाजपेय जी की कविता ।।

।। पद्य संबंधी ।।

कविता : रस की अनुभूति कराने वाली सुंदर अर्थ प्रकट करने वाली लोकोत्तर आनंद देने वाली रचना कविता होती है । इसमें दृश्य की अनुभूतियों को साकार किया जाता है । 

  इस कविता में अटल बिहारी वाजपेयी जी ने नूतन अनुसंधान, संस्कृति के सम्मान, जगत का कल्याण-उत्थान करने के साथ ही-साथ चरित्र निर्माण करने को विशेष महत्त्व प्रदान किया है ।


निर्माणों के पावन युग में 
हम चरित्र निर्माण न भूलें ! 
स्वार्थ साधना की आँधी में 
वसुधा का कल्याण न भूलें !! 

माना अगम अगाध सिंधु है 
संघर्षों का पार नहीं है, 
किंतु डूबना मँझधारों में 
साहस को स्वीकार नहीं है , 
जटिल समस्या सुलझाने को 
नूतन अनुसंधान न भूलें !! 

निर्माणों के पावन युग में 
हम चरित्र निर्माण न भूलें ! 
स्वार्थ साधना की आँधी में 
वसुधा का कल्याण न भूलें !! 


शील, विनय, आदर्श, श्रेष्ठता 
तार बिना झंकार नहीं है, 
शिक्षा क्या स्वर साध सकेगी 
यदि नैतिक आधार नहीं है, 
कीर्ति कौमुदी की गरिमा में 
संस्कृति का सम्मान न भूलें !! 

निर्माणों के पावन युग में 
हम चरित्र निर्माण न भूलें ! 
स्वार्थ साधना की आँधी में 
वसुधा का कल्याण न भूलें !! 


आविष्कारों की कृतियों में 
यदि मानव का प्यार नहीं है, 
सृजनहीन विज्ञान व्यर्थ है 
प्राणी का उपकार नहीं है, 
भौतिकता के उत्थानों में 
जीवन का उत्थान न भूलें !! 

निर्माणों के पावन युग में 
हम चरित्र निर्माण न भूलें ! 
स्वार्थ साधना की आँधी में 
वसुधा का कल्याण न भूलें !!

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।। धन्यवाद ।।


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