।। पद्य संबंधी ।।
कृषक के जीवन पर प्रस्तुत गीत आधारित है । अन्नदाता कृषक की दुर्दशा का वर्णन करते हुए कवि उसका महत्त्व और सम्मान पुनः स्थापित करना चाहता है ।
— दिनेश भारद्वाज
हाथ में संतोष की तलवार
ले जो उड़ रहा है,
जगत में मधुमास,
उसपर सदा पतझर रहा है,
दीनता अभिमान जिसका,
आज उसपर मान कर लूँ ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।
चूसकर श्रम रक्त जिसका,
जगत में मधुरस बनाया,
एक-सी जिसको बनाई,
सृजक ने भी धूप-छाया,
मनुजता के ध्वज तले,
आह्वान उसका आज कर लूँ ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।
विश्व का पालक बन जो,
अमर उसको कर रहा है,
किंतु अपने पालितों के,
पद दलित हो मर रहा है,
आज उससे कर मिला,
नव सृष्टि का निर्माण कर लूँ ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।
क्षीण निज बलहीन तन को,
पत्तियों से पालता जो,
ऊसरों को खून से निज,
उर्वरा कर डालता जो,
छोड़ सारे सुर-असुर,
मैं आज उसका ध्यान कर लूँ ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।
यंत्रवत जीवित बना है,
माँगते अधिकार सारे,
रो रही पीड़ित मनुजता,
आज अपनी जीत हारे,
जोड़कर कण-कण उसी के,
नीड़ का निर्माण कर लूँ ।
उस कृषक का गान कर लूं ।
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