।। पद्य संबंधी ।।
प्रस्तुत गजल के अधिकांश शेरों में वर्मा जी ने हम सबको जीवन में निरंतर अच्छे कर्म करते हुए आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है । गजलकार ने संदेश देते हुए कहा है कि अपने रूप - रंग से सुंदर दिखने के बजाय अपने कर्मों से सुंदर दिखना आवश्यक है ।
— माणिक वर्मा
आपसे किसने कहा स्वर्णिम शिखर बनकर दिखो,
शौक दिखने का है तो फिर नींव के अंदर दिखो ।
चल पड़ी तो गर्द बनकर आस्मानों पर लिखो,
और अगर बैठो कहीं तो मील का पत्थर दिखो ।
सिर्फ देखने के लिए दिखना कोई दिखना नहीं,
आदमी हो तुम अगर तो आदमी बनकर दिखो ।
जिंदगी की शक्ल जिसमें टूटकर बिखरे नहीं,
पत्थरों के शहर में वो आईना बनकर दिखो ।
आपको महसूस होगी तब हरइक दिल की जलन,
जब किसी धागे-सा जलकर मोम के भीतर दिखो ।
एक जुगनू ने कहा मैं भी तुम्हारे साथ हूँ,
वक्त की इस धुंध में तुम रोशनी बनकर दिखो ।
एक मर्यादा बनी है हम सभी के वास्ते,
गर तुम्हें बनना है मोती सीप के अंदर दिखो ।
डर जाए फूल बनने से कोई नाजुक कली,
तुम ना खिलते फूल पर तितली के टूटे पर दिखो ।
कोई ऐसी शक्ल तो मुझको दिखे इस भीड़ में,
मैं जिसे देखू उसी में तुम मुझे अक्सर दिखो ।
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