गजल।। माणिक वर्मा जी की गजल।।

।। पद्य संबंधी ।।

  प्रस्तुत गजल के अधिकांश शेरों में वर्मा जी ने हम सबको जीवन में निरंतर अच्छे कर्म करते हुए आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है । गजलकार ने संदेश देते हुए कहा है कि अपने रूप - रंग से सुंदर दिखने के बजाय अपने कर्मों से सुंदर दिखना आवश्यक है ।

— माणिक वर्मा 

आपसे किसने कहा स्वर्णिम शिखर बनकर दिखो, 
शौक दिखने का है तो फिर नींव के अंदर दिखो । 

चल पड़ी तो गर्द बनकर आस्मानों पर लिखो, 
और अगर बैठो कहीं तो मील का पत्थर दिखो । 

सिर्फ देखने के लिए दिखना कोई दिखना नहीं, 
आदमी हो तुम अगर तो आदमी बनकर दिखो । 

जिंदगी की शक्ल जिसमें टूटकर बिखरे नहीं, 
पत्थरों के शहर में वो आईना बनकर दिखो । 

आपको महसूस होगी तब हरइक दिल की जलन, 
जब किसी धागे-सा जलकर मोम के भीतर दिखो । 

एक जुगनू ने कहा मैं भी तुम्हारे साथ हूँ, 
वक्त की इस धुंध में तुम रोशनी बनकर दिखो । 

एक मर्यादा बनी है हम सभी के वास्ते, 
गर तुम्हें बनना है मोती सीप के अंदर दिखो । 

डर जाए फूल बनने से कोई नाजुक कली, 
तुम ना खिलते फूल पर तितली के टूटे पर दिखो । 

कोई ऐसी शक्ल तो मुझको दिखे इस भीड़ में, 
मैं जिसे देखू उसी में तुम मुझे अक्सर दिखो ।

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।। धन्यवाद ।।

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