⭐ चाँदनी रात ⭐
⭐ चाँदनी रात ⭐
— मैथिलीशरण गुप्त
— मैथिलीशरण गुप्त
चारु चंद्र की चंचल किरणें
खेल रही है जल-थल में ।
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है
अवनि और अंबर तल में ।।
(चारु = सुंदर, मनमोहक ।, थल = भूमि ।, अवनि =पृथ्वी ।, अंबर = आकाश ।)
पुलक प्रकट करती है धरती
हरित तृणों की नोकों से ।
मानो झूम रहे हैं तरू भी
मंद पवन के झोंकों से ।।
(पुलक = रोमांच, खुशी ।, हरित = हरि ।, तृण = घास ।, मंद = धीमा ।)
क्या ही स्वच्छ चाँदनी है यह
है क्या ही निस्तब्ध निशा ।
है स्वच्छंद-सुमंद गंध वह
नीरानंद है कौन दिशा ?
(स्वच्छंद = अपनी इच्छा के अनुसार सब काम करने वाला ।, निस्तब्ध = जो हिलता-डुलता ना हो, निश्चेष्ट ।, सुमंद = बहुत धीमी ।, नीरानंद = जिसमें आनंद ना हो, आनंद रहित ।)
बंद नहीं, अब भी चलते हैं
नियति नटी के कार्य-कलाप ।
पर कितने एकांत अभाव से
कितने शांत और चुपचाप ।।
(नियति = होनी, भाग्य ।, नटी = अभिनय करने वाली स्त्री ।, कार्य-कलाप = गतिविधि ।)
है बिखेर देती वसुंधरा
मोती, सबके सोने पर ।
रवि बटोर लेता है उनको
सदा सवेरा होने पर ।।
(वसुंधरा = पृथ्वी ।)
और विरामदायिनी अपनी
संध्या को दे जाता है ।
शून्य श्याम तनु जिससे उसका
नया रूप छलकाता है ।।
(विरामदायिनी = विश्राम देने वाली ।, श्याम = काला ।, तनु = शरीर ।)
पंचवटी की छाया में है
सुंदर पर्ण कुटीर बना ।
उसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर
धीर-वीर निर्भीक मना ।।
(धीर वीर = दृढ़ मन वाला योद्धा ।, निर्भीक = निडर ।)
जाग रहा यह कौन धनुर्धर
जबकि भुवन भर सोता है ?
भोगी कुसुमायुध योगि-सा
बना दृष्टिगत होता है ।।
(धनुर्धर = तीरंदाज ।, भुवन = संसार ।, कुसुमायुध = कामदेव।, दृष्टिगत = जो दिखाई पड़ता है ।)
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