वरदान माँगूँगा नहीं । कक्षा ९ की कविता ।

🌀 वरदान माँगूँगा नहीं 🌀

— शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ 


यह हार एक विराम है
जीवन महा-संग्राम है
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं ।
वरदान माँगूँगा नहीं ।।



स्मृति सुखद प्रहरों के लिए 

अपने खंडहरों के लिए 

यह जान लो मैं विश्व की संपत्ति चाहूँगा नहीं ।

वरदान माँगूँगा नहीं ।।


क्या हार में क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही ।
वरदान माँगूँगा नहीं ।।



लघुता ना अब मेरी छुओ

तुम ही महान बने रहो 

अपने हृदय की वेदना मैं व्यर्थ क्या त्यागूँगा नहीं ।

वरदान माँगूँगा नहीं ।।


चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्तव्य पथ से किंतु भागूँगा नहीं ।
वरदान माँगूँगा नहीं ।।

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