पद्य संबंधी
यहाँ संत कबीरदास ने अपने दोहों में मनुष्य को सद्गुणों को अपनाकर आगे बढ़ने को कहा है ।
भक्त सूरदास रचित यह पद 'सूरसागर' महाकाव्य से लिया गया हैं । इसमें श्रीकृष्ण की बालसुलभ लीलाओं का वर्णन किया है ।
जैसा भोजन खाइए, तैसा ही मन होय ।
जैसा पानी पीजिये, तैसी बानी होय ।
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय ।
औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय ।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना , मुझसा बुरा न कोय।
(संत कबीर)
मैया, कबहिं बढ़ेगी चोटी ?
किती बार मोहिं दूध पियत भई,
यह अजहूँ है छोटी ।।
तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं,
वै है लाँबी - मोटी ।।
काँचौ दूध पियावत पचि-पचि देत न माखन-रोटी ।।
सूर स्याम चिरजीवौ दोउ भैया,
हरि-हलधर की जोटी ।।
(भक्त सूरदास)
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