।। पद्य सबधी ।।
प्रस्तुत नई कविता में कविवर डॉ. प्रकाश दीक्षित जी ने कर्म, ज्ञान एवं विज्ञान की महत्ता स्थापित की है । आपका कहना है कि हम ज्ञान-विज्ञान के बल पर भले ही आसमान को नाप लें परंतु विनाशक शस्त्रास्त्र से मानवता को बचाना भी आवश्यक है । यह तभी संभव होगा जब समाज में सदाचार, स्नेह बढ़ेगा ।
धरती का आँगन महके कर्मज्ञान - विज्ञान से,
ऐसी सरिता करो प्रवाहित खिले खेत सब धान से ।
अभिलाषाएँ नित मुसकाएँ आशाओं की छाँह में,
पैरों की गति बँधी हुई हो विश्वासों की राह में ।
शिल्पकला-कुमुदों की माला वक्षस्थल का हार हो,
फूल-फलों से हरी-भरी इस धरती का श्रृंगार हो ।
चंद्रलोक या मंगल ग्रह पर चढ़े किसी भी यान से,
किंतु न हो संबंध विनाशक अस्त्रों का इनसान से ।
साँस-साँस जीवनपट बुनकर प्राणों का तन ढाँकती,
सदाचार की शुभ्र शलाका मन सुंदरता आँकती ।
प्रतिभा का पैमाना मेधा की ऊँचाई नापता,
मानवता का मीटर बन , मन की गहराई मापता ।
आत्मा को आवृत्त कर दें स्नेह प्रभा परिधान से,
करें अर्चना हम सब मिलकर वसुधा के जयगान से ।
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