हम उस धरती के संतति हैं ।। उमाकांत मालवीय जी की हिंदी कव्वाली ।।

।। पद्य संबंधी ।।

कव्वाली : कव्वाली का इतिहास सात सौ वर्ष पुराना है । कव्वाली एक लोकप्रिय काव्य विधा है । यह तारीफ या शान में गाया जाने वाला गीत या कविता है । 

  प्रस्तुत कव्वाली में कवि ने दो दलों की नोक-झोंक पेश करते हुए शूरवीर ऐतिहासिक स्त्री-पुरुष पात्रों का वर्णन किया है । यहाँ स्त्री-पुरुष को भारतमाता के रथ के दो पहिये बताया गया है । यहाँ गाते समय पहला पद लड़कों का समूह ; दूसरा पद लड़कियों का समूह और अंतिम पद दोनों समूह प्रस्तुत करते हैं । ये । मिलकर

— उमाकांत मालवीय

हम उस धरती के लड़के हैं, 
जिस धरती की बातें क्या कहिए; 
अजी क्या कहिए; हाँ क्या कहिए । 
यह वह मिट्टी, जिस मिट्टी में 
खेले थे यहाँ ध्रुव-से बच्चे । 

यह मिट्टी, हुए प्रहलाद जहाँ, 
जो अपनी लगन के थे सच्चे । 
शेरों के जबड़े खुलवाकर, 
थे जहाँ भरत दतुली गिनते, 
जयमल-पत्ता अपने आगे, 
थे नहीं किसी को कुछ गिनते ! 

इस कारण हम तुमसे बढ़कर, 
हम सबके आगे चुप रहिए । 
अजी चुप रहिए, हाँ चुप रहिए । 
हम उस धरती के लड़के हैं...

बातों का जनाब, शऊर नहीं, 
शेखी न बघारें, हाँ चुप रहिए । 
हम उस धरती की लड़की हैं, 
जिस धरती की बातें क्या कहिए । 

अजी क्या कहिए, हाँ क्या कहिए । 
जिस मिट्टी में लक्ष्मीबाई जी, 
जन्मी थीं झाँसी की रानी । 
रजिया सुलताना, दुर्गावती, 
जो खूब लड़ी थीं मर्दानी । 
जन्मी थी बीबी चाँद जहाँ, 
पद्मिनी के जौहर की ज्वाला । 
सीता, सावित्री की धरती, 
जन्मी ऐसी-ऐसी बाला । 
गर डींग जनाब उड़ाएँगे, 
तो मजबूरन ताने सहिए, 
ताने सहिए, ताने सहिए । 
हम उस धरती की लड़की हैं .... 

यों आप खफा क्यों होती हैं, 
टंटा काहे का आपस में । 
हमसे तुम या तुमसे हम 
बढ़-चढ़कर क्या रक्खा इसमें । 
झगड़े से न कुछ हासिल होगा, 
रख देंगे बातें उलझा के । 
बस बात पते की इतनी है, 
ध्रुव या रजिया भारत माँ के । 
भारत माता के रथ के हैं हम 
दोनों ही दो-दो पहिये, 
अजी दो पहिये, हाँ दो पहिये । 
हम उस घरती की संतति हैं .....

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।। धन्यवाद ।।

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