सौहार्द–सौमनस्य ।। जहीर कुरैशी के दोहे ।।

।। पद्य संबंधी ।।

  प्रस्तुत दोहों में जहीर कुरैशी जी ने छोटे-बड़े के भेद मिटाने, नफरत, स्वार्थ आदि छोड़ने के लिए प्रेरित किया है । आपका मानना है कि अनेकता में एकता ही अपने देश की शान है । अतः हमें मिल-जुलकर रहना चाहिए ।


वो छोटा, मैं हूँ बड़ा, ये बातें निर्मूल,
उड़कर सिर पर बैठती, निज पैरों की धूल ।

नफरत ठंडी आग है, इसमें जलना छोड़,
टूटे दिल को प्यार से , जोड़ सके तो जोड़ ।

पौधे ने बाँट नहीं, नाम पूछकर फूल, 
हमने ही खोले बहुत, स्वारथ के इस्कूल । 

धर्म अलग, भाषा अलग, फिर भी हम सब एक,
विविध रंग करते नहीं, हमको कभी अनेक ।

जो भी करता प्यार वो, पा लेता है प्यार, 
प्यार नकद का काम है, रहता नहीं उधार । 

जर्रे-जर्रे में खुदा, कण-कण में भगवान, 
लेकिन 'जर्रे' को कभी, अलग न 'कण' से मान । 

इसीलिए हम प्यार की, करते साज-सम्हार, 
नफरत से नफरत बढ़े, बढ़े प्यार से प्यार । 

भाँति-भाँति के फूल हैं, फल बगिया की शान, 
फल बगिया लगती रही, मुझको हिंदुस्तान । 

हम सब जिसके नाम पर, लड़ते हैं हर बार, 
उसने सपने में कहा, लड़ना है बेकार ! 

कितना अच्छा हो अगर, जलें दीप से दीप, 
ये संभव तब हो सके, आएँ दीप समीप ।।

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