नहीं कुछ इससे बढ़कर ।। सुमित्रानंदन पंतजी के गीत ।।

 ।। पद्य संबंधी ।।

  प्रस्तुत गीत में कवि सुमित्रानंदन पंत जी ने माँ, कृषक, कलाकार, कवि, बलिदानी पुरुष एवं लोक के महत्त्व को स्थापित किया है । आपका मानना है कि उपरोक्त सभी व्यक्ति, समाज, देश के हित में सदैव तत्पर रहते हैं । अतः इनकी पूजा से बढ़कर दूसरी कोई पूजा नहीं है ।

प्रसव वेदना सह जब जननी 
हृदय स्वप्न निज मूर्त बनाकर 
स्तन्यदान दे उसे पालती, 
पग-पग नव शिशु पर न्योछावर 
नहीं प्रार्थना इससे सुंदर ! 

शीत-ताप में जूझ प्रकृति से 
बहा स्वेद, भू-रज कर उर्वर, 
शस्य श्यामला बना धरा को 
जब भंडार कृषक देते भर 
नहीं प्रार्थना इससे शुभकर ! 

कलाकार-कवि वर्ण-वर्ण को 
भाव तूलि से रच सम्मोहन 
जब अरूप को नया रूप दे 
भरते कृति में जीवन स्पंदन 
नहीं प्रार्थना इससे प्रियतर !

सत्य-निष्ठ, जन-भू प्रेमी जब 
मानव जीवन के मंगल हित 
कर देते उत्सर्ग प्राण निज 
भू-रज को कर शोणित रंजित 
नहीं प्रार्थना इससे बढ़कर ! 

चख-चख जीवन मधुरस प्रतिक्षण 
विपुल मनोवैभव कर संचित, 
जन मधुकर अनुभूति द्रवित जब 
करते भव मधु छत्र विनिर्मित 
नहीं प्रार्थना इससे शुचितर !

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