भारत महिमा।। जयशंकर प्रसाद जी की कविता।।

।। पद्य सबंधी ।।

  प्रस्तुत कविता में कवि ने अपने देश के गौरवशाली अतीत का सजीव वर्णन किया है । कवि का कहना है कि हमें अपने देश पर गर्व करते हुए उसके प्रति अपना सर्वस्व निछावर करने के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए ।

— जयशंकर प्रसाद 

हिमालय के आँगन में उसे, 
किरणों का दे उपहार
उषा ने हँस अभिनंदन किया, 
और पहनाया हीरक हार । 

जगे हम, लगे जगाने विश्व, 
लोक में फैला फिर आलोक
व्योमतम पुंज हुआ तब नष्ट, 
अखिल संसृति हो उठी अशोक । 

विमल वाणी ने वीणा ली, 
कमल कोमल कर में सप्रीत
सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे, 
छिड़ा तब मधुर साम संगीत । 

विजय केवल लोहे की नहीं, 
धर्म की रही धरा पर धूम
भिक्षु होकर रहते सम्राट, 
दया दिखलाते घर-घर घूम ।

'यवन' को दिया दया का दान, 
चीन को मिली धर्म की दृष्टि
मिला था स्वर्ण भूमि को रत्न, 
शील की सिंहल को भी सृष्टि ।

किसी का हमने छीना नहीं, 
प्रकृति का रहा पालना यहीं
हमारी जन्मभूमि थी यहीं, 
कहीं से हम आए थे नहीं ।......

चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, 
नम्रता रही सदा संपन्न
हृदय के गौरव में था गर्व, 
किसी को देख न सके विपन्न ।

हमारे संचय में था दान, 
अतिथि थे सदा हमारे देव
वचन में सत्य, हृदय में तेज, 
प्रतिज्ञा में रहती थी टेव ।

वही है रक्त, वही है देश, 
वही साहस है, वैसा ज्ञान
वही है शांति, वही है शक्ति, 
वही हम दिव्य आर्य संतान ।

जिएँ तो सदा इसी के लिए, 
यही अभिमान रहे यह 
हर्ष निछावर कर दें हम सर्वस्व, 
हमारा प्यारा भारतवर्ष ।

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।। धन्यवाद ।।


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