गिरिधर नागर।। संत मीराबाई के पद।।

।। पद्य संबंधी ।।

 मीराबाई के सभी पद उनके आराध्य के प्रति ही समर्पित हैं । आपके पदों का मुख्य स्वर भगवत प्रेम ही है । प्रस्तुत पदों में आपकी उत्सुकता, मिलन, आशा, प्रतीक्षा के भाव सभी अनुपम हैं ।

— संत मीराबाई 

———(१)———

मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई 
जाके सिर मोर मुकट, मेरो पति सोई 
छाँड़ि दई कुल की कानि, कहा करिहै कोई ? 
संतन ढिग बैठि-बैठि, लोक लाज खोई । 
अँसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम बेलि बोई । 
अब तो बेल फैल गई आणँद फल होई ।। 
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से बिलोई । 
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई ।। 
भगत देखि राजी हुई जगत देखि रोई । 
दासी 'मीरा' लाल गिरिधर तारो अब मोही ।। 

———(२)———

हरि बिन कूण गती मेरी ।। 
तुम मेरे प्रतिपाल कहिये मैं रावरी चेरी ।। 
आदि–अंत निज नाँव तेरो हीमायें फेरी । 
बेर-बेर पुकार कहूँ प्रभु आरति है तेरी ।। 
यौ संसार बिकार सागर बीच में घेरी ।
नाव फाटी प्रभु पाल बाँधो बूड़त है बेरी ।। 
बिरहणि पिवकी बाट जौवै राखल्यो नेरी । 
दासी मीरा राम रटत है मैं सरण हूँ तेरी ।।

——-(३)———

फागुन के दिन चार होरी खेल मना रे । 
बिन करताल पखावज बाजै, 
अणहद की झनकार रे । 

बिन सुर राग छतीसूँ गावै, 
रोम-रोम रणकार रे ।। 
सील संतोख की केसर घोली, 
प्रेम-प्रीत पिचकार रे । 

उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, 
बरसत रंग अपार रे ।। 
घट के पट सब खोल दिए हैं, 
लोकलाज सब डार रे । 
'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर, 
चरण कैवल बलिहार रे ।।

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।। धन्यवाद ।।


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